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भारतीय वास्तुशास्त्र (प्राचीन विज्ञानऔर कला का अभूतपूर्व सामंजस्य)

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।। ॐ श्री गायत्रीदेव्यै नमः।।   ।। ॐ श्री विश्वकर्माय नमः।।   ।। ॐ श्री वास्तुदेवताय नमः।।  वास्तु का इतिहास प्राचीनतम है । भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का प्रथम प्रवर्तक माना गया है । वास्तुशास्त्र का वर्णन वेदों में भी है।  स्थापत्य विद्या ही वास्तुशास्त्र का मूल रूप है । चीनी वास्तुशास्त्र फेंग शुई का आधार भी भारतीय वास्तुशास्त्र है।    हमारे पुराने मनीषियों ने वास्तुविद्या का गहन अध्ययन कर इसके नियम निर्धारित किये हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी इस पर काफी खोज की है। विकसित यंत्रों के प्रयोग से इसको और अधिक प्रत्यक्ष व पारदर्शी बनाया है। शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालने वाली उच्च दाब की विद्युत, चुम्बकीय, अल्फा, बीटा, गामा व रेडियो तरंगों के प्रभाव का मापन कर वास्तु का विश्लेषण किया जा सकता है। वर्तमान में हम किसी भी मकान, भूखंड, दुकान, मंदिर कारखाना या अन्य परिसर में वास्तु की  जाँचकर मानव-शरीर पर इसके प्रभावों की गणना कर सकते हैं। आधुनिक विज्ञान ने परम्परागत वास्तु के नियमों को न केवल सही पाया बल्कि मानव निर्मित उच्च दाब की विद्युत लाइनो...

ज्योतिष के प्रवर्तक आचार्यों का परिचय

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  ।।   ॐ श्री वेदमाता गायत्रीदेव्यै नमः   ।।         ।।   ॐ श्री ज्योतिषरुपाय नमः ।।  प्राचीनकाल से ही महाविज्ञान ज्योतिषशास्त्र अपने प्रयोगों से इस संसार को चमत्कृत करता रहा है । यह अथाह महासागर है जिसमें जिसने जितनी गहरी डुबकी लगाई उसे उतने ही ज्ञान रूपी रत्न मिले और वह उतना ही विश्वप्रसिद्ध हुआ । आज हम उन्हीं विश्वप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों के विषय में बात करते हैं ।   सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम  जिन्होंने ज्योतिष शास्त्र को चलाया ऐसे ज्योतिष शास्त्र के 18 प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं। ये हैं- ब्रह्मा,वशिष्ठ,आचार्य(सूर्य), अत्रि, मनु,  पुलस्त्य , रोमक, मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक, भृगु, च्यवन, यवन, गर्ग, कश्यप और पराशर। 1. जगतपिता ब्रह्मा :- वेदों की रचना ब्रह्मा जी ने की और ज्योतिष वेद का अंग है अर्थात ज्योतिष के प्रथम प्रवर्तक परमपिता ब्रह्मा हैं।  2. देवर्षि नारद :- ब्रह्मा जी के मानस पुत्र देवर्षि नारद ने नारद संहिता की रचना करके ज्योतिष को विशेषता प्रदान कर दी ।   3. म...

वेदमाता गायत्री (VEDMATA GAYATRI)

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                     ।।  ॐ श्री गायत्रीदेव्यै नमः ।।  अथो वक्ष्यामि गायत्रीम् तत्वरूपां त्रयीमयीं ।  यया प्रकाश्यते ब्रह्म सच्चिदानंद लक्षणं ।।   - प्रपंचसारतंत्रे       मैं चौबीस तत्त्वात्मक  वेदस्वरूपिणी गायत्री के विषय में  कहता हूँ ,  जिससे सच्चिदानंद रूप ब्रह्म प्रकाशित होते हैं ।  नित्य नैमित्तिके काम्ये तृतीये तपवर्धने ।  गायत्री अस्तु परं नास्ति इह लोके परत्र च ।। - मंत्रमहार्णव        नित्य, नैमित्तिक, काम्य और तपोवृद्धि के लिए इस लोक या परलोक में गायत्री से श्रेष्ठ कुछ नहीं है।   जब पार्वती जी ने भगवान शिव से गायत्री के विषय में पूछा तो महादेव ने कहा - हे देवी यह गायत्री परायणों में परं ब्रह्मस्वरूपिणी है। इसे परा, परमेशानी तथा परब्रह्मात्मिका माना गया है। यह वरारोहा है। मैं इसका ही चिंतन करता हूँ । - श्री रुद्रयामले गायत्री सहस्त्रनामे  माँ गायत्री से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती है...

Hanuman jayanti special

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                   Hanuman Jayanti special According to the exact calculations of astrologers, Hanuman ji was born 58 thousand 112 years ago and according to popularity, in the last phase of Tretayuga, on the day of Chaitra Purnima, on Tuesday, at 6.03 am in the sum of Chitra Nakshatra and Aries Lagna, a small hill named Anjan in India Took place in a village cave. He is known as Bajrangbali because his body was like a thunderbolt. He is known as Pawan Putra. Vayu or Pawan (the god of wind) played an important role in raising Hanuman. Marut (Sanskrit: मृुत) means air. Nandan means son. According to Hindu mythology, Hanuman is "Maruti" meaning "Marut-Nandan" (son of wind). The worship of Hanuman ji in Kali-yuga is a desired fruit. This sadhana can be done in a particular festival, eclipse or Navratri. Any meditation should be done under the guidance of the Guru so that there is no disturbance in the practice, even if there are any pr...

हनुमान जयंती विशेष

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                                                                     हनुमान जयंती विशेष                 ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में  चैत्र पूर्णिमा  को मंगलवार के दिन  चित्रा नक्षत्र  व  मेष लग्न  के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक  वज्र  की तरह था । वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं। ...