वेदमाता गायत्री (VEDMATA GAYATRI)
।। ॐ श्री गायत्रीदेव्यै नमः ।।
अथो वक्ष्यामि गायत्रीम् तत्वरूपां त्रयीमयीं ।
यया प्रकाश्यते ब्रह्म सच्चिदानंद लक्षणं ।। - प्रपंचसारतंत्रे
मैं चौबीस तत्त्वात्मक वेदस्वरूपिणी गायत्री के विषय में
कहता हूँ , जिससे सच्चिदानंद रूप ब्रह्म प्रकाशित होते हैं ।
नित्य नैमित्तिके काम्ये तृतीये तपवर्धने ।
गायत्री अस्तु परं नास्ति इह लोके परत्र च ।। - मंत्रमहार्णव
नित्य, नैमित्तिक, काम्य और तपोवृद्धि के लिए इस लोक या परलोक में गायत्री से श्रेष्ठ कुछ नहीं है।
जब पार्वती जी ने भगवान शिव से गायत्री के विषय में पूछा तो महादेव ने कहा - हे देवी यह गायत्री परायणों में परं ब्रह्मस्वरूपिणी है। इसे परा, परमेशानी तथा परब्रह्मात्मिका माना गया है। यह वरारोहा है। मैं इसका ही चिंतन करता हूँ । - श्री रुद्रयामले गायत्री सहस्त्रनामे
माँ गायत्री से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती है। इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है वह अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से मिल जाता है।माँ गायत्री को हिंदू भारतीय संस्कृति की जन्मदात्री मानते हैं।
चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश ती
नों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहा जाता है।
महाभारत और वेदों गायत्री मंत्र का उल्लेख कई बार आता है और इस मंत्र की महिमा को शास्त्रों, आरण्यक और सूत्र ग्रंथों तथा उपनिषद् दर्शनों में विस्तार से बताया गया है। क्योंकि आदिकाल से गायत्री मंत्र भारतीय धर्मानुयायियों का उपास्य मंत्र रहा है।
महाभारत में अनुशासन पर्व के अध्याय 150 में उल्लेख मिलता है कि, 'जब भीष्म पितामह अपने आखिरी समय में बाणों की शरशय्या पर थे तो उस समय अन्तिम उपदेश के रूप में युधिष्ठिर ने उन्हें गायत्री मंत्र की उपासना का महत्व सुनाया था।'
युधिष्ठिर कहते हैं, 'जो व्यक्ति सावित्री (गायत्री) का जप करते हैं उनको धन, पात्र, गृह सभी भौतिक वस्तुएं प्राप्त होती हैं। उनको राजा, दुष्ट, राक्षस, अग्नि, जल, वायु और सर्प किसी से भय नहीं रहता। जो लोग गायत्री मंत्र का जप करते हैं, वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्ण एवं चारों आश्रमों में सफल रहते हैं। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया।
सद्ज्ञान की उपासना का नाम ही गायत्री उपासना है। जो इस साधना के साधक हैं, उन्हें आत्मिक एवं सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती, ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास और दीर्घकालीन अनुभव है। — श्रीराम शर्मा आचार्य
गायत्री सूत्र है, तो वैदिक ऋचाएँ उनकी विस्तृत व्याख्या हैं।
गायत्री (ही) परमात्मा है। ब्रह्म गायत्रीति- ब्रह्म वै गायत्री। —शतपथ ब्राह्मण , -ऐतरेय ब्रा० अ० १७ खं० ५
ब्रह्म गायत्री है, गायत्री ही ब्रह्म है।
सप्रभं सत्यमानन्दं हृदये मण्डलेऽपि च। ध्यायञ्जपेत्तदित्येतन्निष्कामो मुच्यतेऽचिरात्॥ —विश्वामित्र
प्रकाश सहित सत्यानन्द स्वरूप ब्रह्म को हृदय में और सूर्य मण्डल में ध्यान करता हुआ, कामना रहित हो गायत्री मन्त्र को यदि जपे, तो अविलम्ब संसार के आवागमन से छूट जाता है।
ओंकारस्तत्परं ब्रह्म सावित्री स्यात्तदक्षरम्। —कूर्म पुराण उ० विभा० अ० १४/५७
ओंकार परब्रह्म स्वरूप है और गायत्री भी अविनाशी ब्रह्म है।
गायत्री तु परं तत्त्वं गायत्री परमागति:। —बृहत्पाराशर गायत्री मन्त्र पुरश्चरण वर्णनम् ४/४
गायत्री परम तत्त्व है, गायत्री परम गति है।
सर्वात्मा हि सा देवी सर्वभूतेषु संस्थिता। गायत्री मोक्षहेतुश्च मोक्षस्थानमसंशयम्॥ —ऋषि शृंग
यह गायत्री देवी समस्त प्राणियों में आत्मा रूप में विद्यमान है, गायत्री मोक्ष का मूल कारण तथा सन्देह रहित मुक्ति का स्थान है।
गायत्र्येव परो विष्णुर्गायत्र्येव पर: शिव:। गायत्र्येव परो ब्रह्म गायत्र्येव त्रयी तत:॥ - स्कन्द पुराण काशीखण्ड ४/९/५८, वृहत्सन्ध्या भाष्य
गायत्री ही दूसरे विष्णु हैं और शंकर जी दूसरे गायत्री ही हैं। ब्रह्माजी भी गायत्री में परायण हैं, क्योंकि गायत्री तीनों देवों का स्वरूप है।
गायत्री वा इदं सर्वं भूतं यदिदं किंच। —छान्दोग्योपनिषद् ३/१२/१
यह विश्व जो कुछ भी है, वह समस्त गायत्रीमय है।
नभिन्नां प्रतिपद्येत गायत्रीं ब्रह्मणा सह। सोऽहमस्मीत्युपासीत विधिना येन केनचित् —व्यास
गायत्री और ब्रह्म में भिन्नता नहीं है। अत: चाहे जिस किसी भी प्रकार से ब्रह्म स्वरूपी गायत्री की उपासना करे।
गायत्री प्रत्यग्ब्रह्मौक्यबोधिका। —शकंर भाष्य
गायत्री प्रत्यक्ष अद्वैत ब्रह्म की बोधिका है।
परब्रह्मस्वरूपा च निर्वाणपददायिनी। ब्रह्मतेजोमयी शक्तिस्तदधिष्ठतृ देवता —— देवी भागवत स्कन्ध ९ अ.१/४२
गायत्री मोक्ष देने वाली, परमात्मस्वरूप और ब्रह्मतेज से युक्त शक्ति है और मन्त्रों की अधिष्ठात्री है।
गायत्र्याख्यं ब्रह्म गायत्र्यनुगतं गायत्री मुखेनोक्तम्॥ —छान्दोग्य० शकंर भाष्य ३/१२/१५
गायत्री स्वरूप एवं गायत्री से प्रकाशित होने वाला ब्रह्म गायत्री नाम से वर्णित है।
ते वा एते पञ्च ब्रह्मपुरुषा: स्वर्गस्य लोकस्य द्वारपा: स य एतानेवं पचं ब्रह्मपुरुषान् स्वर्गस्य लोकस्य द्वारपान् वेदास्य कुले वीरो जायते प्रतिपद्यते स्वर्गलोकम्। —— छा० ३/१३/६
हृदय चैतन्य ज्योति गायत्री रूप ब्रह्म के प्राप्ति स्थान के प्राण, व्यान, अपान, समान, उदान ये पाँच द्वारपाल हैं। इन्हीं को वश में करे, जिससे हृदयस्थित गायत्री स्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति हो। उपासना करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है और उसके कुल में वीर पुत्र या शिष्य उत्पन्न होता है।
भूमिरन्तरिक्षं द्यौरित्यष्टवक्षराण्यष्टक्षरं ह वा एकं गायत्र्यै पदमेतदु हैवास्या एतत्स यावदेषु त्रिषु लोकेषु तावद्ध जयति योऽस्या एतदेवं पदं वेद। —बृह० ५/१४/१ भूमि, अन्तरिक्ष, द्यौ- ये तीनों गायत्री के प्रथम पाद के आठ अक्षरों के बराबर हैं। अत: जो गायत्री के प्रथम पद को भी जान लेता है, वह त्रिलोक विजयी होता है।


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