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Solar eclipse(सूर्य ग्रहण)

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मंत्र सिद्धि में सूर्य ग्रहण का महत्त्व

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                     मंत्र सिद्धि में सूर्यग्रहण का महत्त्व               मंत्रसिद्धि के लिये सर्वोत्तम समय ग्रहणकाल है l  ग्रहण काल में किसी भी एक मंत्र को, जिसकी सिद्धि करना हो या किसी विशेष प्रयोजन हेतु सिद्धि करना हो, जप सकते है।   ग्रहण काल में मंत्र जपने के लिए माला की आवश्यकता नहीं होती बल्कि समय का ही महत्व होता है। गुरु के सानिध्य में ही साधना करना चाहिए l ‘गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है, केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं है।  गायत्री मन्त्र  के जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ है और न होगा।’ सर्वफलप्रदा, देवताओं और ऋषियों की उपास्य गायत्री ’करोड़ों मन्त्रों में सर्वप्रमुख मन्त्र गायत्री है जिसकी उपासना ब्रह्मा आदि देव भी करते हैं। यह गायत्री ही वेदों का मूल है।’ गायत्री के तीन रूप हैं–सरस्वती, लक्ष्मी एवं काली। ह्रीं श्रीं क्लीं चेति रूपेभ्यस्त्रिभ्यो हि लोकपालिका। भासते सततं लोके गायत्री त्रिगुणात्मिका।। (गायत्रीसंहिता) ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र आद...
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              सूर्यग्रहण विशेष 26 दिसंबर 2019 को सूर्य ग्रहण है। धार्मिक और वैज्ञानिक रूप से ग्रहण काल का विशेष महत्त्व होता है। दोनों ही मानते हैं कि इस घटना से प्रकृति में हलचल होती है । वहीं धार्मिक दृष्टि से इस अवधि में कई कार्यों को वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं सूर्य  ग्रहण के विषय में विस्तार सै -  सूर्य ग्रहण का समय और सूतक काल-  भारतीय समयानुसार सूर्य ग्रहण सुबह 08 बजकर 17 मिनट पर लगेगा और 10 बजकर 57 मिनट में समाप्त हो जाएगा। खण्डग्रास की अवधि 2 घंटे 40 मिनट तक रहेगी। जबकि सूर्य ग्रहण में लगने वाला सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पूर्व लग जाएगा। किस राशि और नक्षत्र में लग रहा है सूर्य ग्रहण :-  सूर्य ग्रहण गुरु की राशि धनु और मूल नक्षत्र में लग रहा है। मूल नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है। सूर्य ग्रह, धनु राशि और मूल नक्षत्र के बीच की सामंजस्यता को देखें तो इन तीनों के मध्य अच्छी सामंजस्यता दिखाई दे रही है। सूर्य ग्रहण के दौरान बरतें ये सावधानियाँ :-  गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान घर से बाहर नहीं न...
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भगवान दत्तात्रेय जयंती विशेष           एवम्‌ दत्तात्रेय तंत्र  हिंदू धर्म में भगवान ब्रह्मा , विष्णु और महेश को त्रिदेव कहा जाता है l इन त्रिदेवों को सनातन धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है और भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेवों का स्वरूप माना जाता है l ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश दत्तात्रेय को श्री गुरुदेव दत्त के नाम से भी जाना जाता है l कहा जाता है कि उन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी l भगवान दत्तात्रेय महर्षि अत्रि और सती अनुसुइया की पुत्र थे l हिंदू पंचांग के अनुसार, दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि को प्रदोषकाल में हुआ था, इसलिए हर साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त अथवा  दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है. इस साल दत्त जयंती 11 दिसंबर 2019 को मनाई जाएगी l दत्तात्रेय भगवान के स्वरूप का वर्णन किया जाए तो उनके तीन सिर हैं और छह भुजाएं हैं l मान्यता है कि उनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों त्रिदेवों के संयुक्त अंश समाहित हैं. दत्त जयंती के अवसर पर उनके बाल स्वरूप की पूजा की जाती है l चलिए जानते हैं दत्त भगवा...