मंत्र सिद्धि में सूर्य ग्रहण का महत्त्व



                    मंत्र सिद्धि में सूर्यग्रहण का महत्त्व
              मंत्रसिद्धि के लिये सर्वोत्तम समय ग्रहणकाल है l ग्रहण काल में किसी भी एक मंत्र को, जिसकी सिद्धि करना हो या किसी विशेष प्रयोजन हेतु सिद्धि करना हो, जप सकते है। ग्रहण काल में मंत्र जपने के लिए माला की आवश्यकता नहीं होती बल्कि समय का ही महत्व होता है। गुरु के सानिध्य में ही साधना करना चाहिए l
‘गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है, केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं है। गायत्री मन्त्र के जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ है और न होगा।’

सर्वफलप्रदा, देवताओं और ऋषियों की उपास्य गायत्री


’करोड़ों मन्त्रों में सर्वप्रमुख मन्त्र गायत्री है जिसकी उपासना ब्रह्मा आदि देव भी करते हैं। यह गायत्री ही वेदों का मूल है।’
गायत्री के तीन रूप हैं–सरस्वती, लक्ष्मी एवं काली।
ह्रीं श्रीं क्लीं चेति रूपेभ्यस्त्रिभ्यो हि लोकपालिका।भासते सततं लोके गायत्री त्रिगुणात्मिका।। (गायत्रीसंहिता)
ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र आदि बड़े-बड़े दिव्य अस्त्र इसी गायत्री मन्त्र के अनुलोम-विलोम विधि से तैयार किए जाते हैं। सन्ध्यावन्दन के समय गायत्री मन्त्र के उच्चारण के साथ दिया गया अर्घ्य ऐसे ही ब्रह्मास्त्र का रूप धारणकर सूर्य के सभी शत्रु राक्षसों का सफाया करके उनके उदित होने के लिए निष्कण्टक मार्ग बना देता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब विश्वामित्र ने महर्षि वशिष्ठ के वध के लिए भगवान शंकर से प्राप्त पचासों दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया तब वशिष्ठ ने केवल ब्रह्मदण्ड से ही उन सब दिव्यास्त्रों को निष्फल कर दिया। ऋषि वशिष्ठ ने इस ब्रह्मदण्ड का निर्माण गायत्री मन्त्र की साधना से ही किया था।
स्कन्दपुराण में महर्षि व्यास ने कहा है–‘गायत्री ही तप है, गायत्री ही योग है, गायत्री ही सबसे बड़ा ध्यान और साधना है। इससे बढ़कर सिद्धिदायक साधन और कोई नहीं है।’

गायत्री सद्बुद्धिदायक मन्त्र है

ॐ भू: भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
         
      जिन देवता को आप अपना इष्ट मानते हैं उन देवता से सम्बंधित गायत्री मंत्र का जाप ग्रहण में करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं l
चौबीस देवताओं के गायत्री मन्त्र
१. गणेश गायत्रीॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।
२. नृसिंह गायत्रीॐ वज्रनखाय विद्महे, तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि, तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।
३. विष्णु गायत्रीॐ त्रैलोक्यमोहनाय विद्महे, कामदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।
४. शिव गायत्रीॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
५. कृष्ण गायत्रीॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।
६. राधा गायत्री–ॐ वृषभानुजायै विद्महे, कृष्णप्रियायै धीमहि, तन्नो राधा प्रचोदयात्।
७. लक्ष्मी गायत्री–ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
८. अग्नि गायत्री–ॐ महाज्वालाय विद्महे, अग्निदेवाय धीमहि, तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।
९. इन्द्र गायत्री–ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे, वज्रहस्ताय धीमहि, तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।
१०. सरस्वती गायत्री–ॐ सरस्वत्यै विद्महे, ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।
११. दुर्गा गायत्री–ॐ गिरिजायै विद्महे, शिवप्रियायै धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।
१२. हनुमान गायत्री–ॐ आंजनेयायै विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।
१३. पृथ्वी गायत्री–ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे, सहस्त्रमूत्यै धीमहि, तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।
१४. सूर्य गायत्री–ॐ आदित्याय विद्महे, सहस्त्रकिरणाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
 १५. राम गायत्री–ॐ दाशरथाय विद्महे, सीतावल्लभाय धीमहि, तन्नो राम: प्रचोदयात्।
१६. सीता गायत्री–ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे, भूमिजायै धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात्।
१७. चन्द्र गायत्री–ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्त्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।
१८. यम गायत्री–ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि, तन्नो यम: प्रचोदयात्।
१९. ब्रह्मा गायत्री–ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, हंसारुढ़ाय धीमहि, तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।
२०. वरुण गायत्री–ॐ जलबिम्बाय विद्महे, नीलपुरुषाय धीमहि, तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।
२१. नारायण गायत्री–ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।
२२. हयग्रीव गायत्री–ॐ वागीश्वराय विद्महे, हयग्रीवाय धीमहि, तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।
२३. हंस गायत्री–ॐ परमहंसाय विद्महे, महाहंसाय धीमहि, तन्नो हंस: प्रचोदयात्।
२४. तुलसी गायत्री–ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।
प्राणतोषिणी तंत्र में इसका वर्णन मिलता है. अर्थात काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धुमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला ये दस महाविद्याएं हैं. जिसे निगम वेद में विराट विद्या कहते हैं. आगम तंत्र में उसे महाविद्या कहते हैं. दक्षिण व वाम मार्ग के लोग दस महाविद्या की उपासना एवं आराधना कर सर्वसिद्धि प्राप्त करते हैं. जिनके मंत्र इस प्रकार है:-
मां काली का मंत्र : ॐ कालिकायै विदमहे, श्मशान वासिन्यै धीमहि, तन्नो अघोरा प्रचोदयात l 
मां तारा का मंत्र : ॐ तारायै विदमहे विदमहे, महोग्रायै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l
मां त्रिपुरसुंदरी का मंत्र : ऐं त्रिपुरादेव्यै विदमहे, क्लीं कामेश्वर्यै धीमहि, तन्न: क्लिन्नै प्रचोदयात l
मां भुवनेश्वरी का मंत्र : ॐ नारायण्यै विदमहे, भुवनेश्वर्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l
मां भैरवी का मंत्र : ॐ त्रिपुरायै विदमहे, महाभैरव्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l
मां छिन्नमस्तिका का मंत्र : ॐ वैरोचनायै विदमहे,छिन्नमस्तायै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l 
मां धुमावती का मंत्र : ॐ धुमावत्यै विदमहे, संहारिण्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l 
मां बगलामुखी का मंत्र : ॐ ह्लीम् ब्रह्मास्त्राय विदमहे, स्तम्भन वाणाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l
मां कमला का मंत्र : ॐ महादेव्यै विदमहे, विष्णु पत्न्ययै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात l 
नोट: किसी भी मंत्र के जाप से पहले गायत्री मंत्र का जाप नितांत आवश्यक माना गया है l इसके जाप के बिना महाविद्या के वास्तविक स्वरूप का दर्शन नहीं होता l
 1. दरिद्रता एवं दुःख को यदि जड़ से उखाड़ फेंकना हो, तो सूर्य ग्रहण मे कमला तंत्र वर्णित लक्ष्मी के मूल स्वरूप की ‘कमला साधना’ अवश्य सम्पन्न करें। इस साधना को जो भी साधक श्रेष्ठ मुहूर्त (सूर्य ग्रहण) में पूर्ण विधि-विधान से करता है, उसके जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उसका दुर्भाग्य, सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।

साधना विधि :-

कमला तंत्र के अनुसार सूर्य ग्रहण से पूर्व साधक स्नान, ध्यान कर पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं l
 दाहिने हाथ मे थोड़ा जल लेकर विनियोग मंत्र बोले और जल को जमीन पर छोड़ दे-
विनियोग:- ॐ ब्रह्मा ॠषये नमः शिरसि। गायत्रीश्छन्दसे नमः मुखे,श्री जगन्मातृ महालक्ष्म्यै देवतायै नमः  हृदि,श्रीं बीजाय नमः गुह्ये,सर्वेष्ट सिद्धये धनप्राप्तये ममाभीष्टप्राप्तये जपे विनियोग:।
भगवती कमला के आह्वान और पूजन के पश्चात् इस साधना में ‘कवच’ पाठ का विधान है। इस दुर्लभ कवच का पाठ करें, जो महत्वपूर्ण है, कवच पाठ के साथ साधना सम्पन्न करने पर साधक को ओज, तेज, बल, बुद्धि तथा वैभव प्राप्त होने लग जाता है। इस कवच का उच्चारण सनत्कुमार ने भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया था। कमला उपनिषद् में इस लघु कवच का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयोग है –

कमला कवच:-


ऐंकारी मस्तके पातु वाग्भवी सर्व सिद्धिदा।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षु युग्मे च शांकरी।

जिह्वायां मुख-वृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि।
ओष्ठाधरे दन्त पंक्तौ तालु मूले हनौ पुनः॥

पातु मां विष्णु वनिता लक्ष्मीः श्री विष्णु रूपिणी।
कर्ण-युग्मे भुज-द्वये-रतन-द्वन्द्वे च पार्वती॥

हृदये मणि-बन्धे च ग्रीवायां पार्श्वयोर्द्वयोः।
पृष्ठदेशे तथा गृह्ये वामे च दक्षिणे तथा॥

स्वधा तु-प्राण-शक्त्यां वा सीमन्ते मस्तके तथा।
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः॥

पुष्टिः पातु महा-माया उत्कृष्टिः सर्वदावतु।
ॠद्धिः पातु सदादेवी सर्वत्र शम्भु-वल्लभा॥

वाग्भवी सर्वदा पातु, पातु मां हर-गेहिनी।
रमा पातु महा-देवी, पातु माया स्वराट् स्वयं॥

सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णु-माया सुरेश्वरी।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम॥

शिव-दूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा।
भैरवी पातु सर्वत्र भैरुण्डा सर्वदावतु॥

पातु मां देव-देवी च लक्ष्मीः सर्व-समृद्धिदा।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्व-सिद्धये॥
वास्तव में ही यह कवच जो कि ऊपर स्पष्ट किया गया है अपने आप में महत्वपूर्ण है, यदि साधक नित्य इसके ग्यारह पाठ करता है, तो भी उसे जीवन में धन, वैभव, यश, सम्मान प्राप्त होता रहता है। प्रयोग में इसके पांच पाठ करें। कमला कवच के पाठ के पश्चात् ‘ कमल गट्टा माला ’ या " स्फटिक माला " का कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से पूजन करें और पूजन के पश्चात् ‘ जप माला ’ से निम्न कमला मंत्र की 16 माला मंत्र जप करें।
ॐ  ह्रीम् कमलवासिन्यै नमः 
ग्रहण के बाद भी साधक को 21 दिनों तक नित्य 1 माला जाप करते रहना चाहिए और साधना काल मे साधनात्मक नियमो का भी पालन करे । मैं कुछ  साधनात्मक नियम बता देता हूं जो जरूरी है,प्रथम नियम साधना नित्य एक ही समय पर करे,दूसरा नियम स्त्री को जब राजस्वाल हो तो उस समय उनके हाथों बना भोजन ना करे और उनका स्पर्श भी ना होने दे,तीसरा नियम साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करे,आखरी नियम मास-मदिरा का त्याग करें । जिसने भी ये चार नियम समझलिये उसका जीवन साधना के क्षेत्र में अद्वितीय हो सकता है ।
2. देवी के दस महाविद्या स्वरुप में से एक स्वरुप माँ बगलामुखी का है. इन्हें पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है. ये स्वयं पीली आभा से युक्त हैं और इनकी पूजा में पीले रंग का विशेष प्रयोग होता है. इनको स्तम्भन शक्ति की देवी माना जाता है.
माँ बगलामुखी के पूजा के नियम और सावधानियां क्या हैं?
- इनकी पूजा तंत्र की पूजा है अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के नही करनी चाहिए l
- इनकी पूजा कभी भी किसी के नाश के लिये न करें l
- इनकी पूजा में व्यक्ति को पीले आसन, पीले वस्त्र, पीले फल और पीले नैवैद्य का प्रयोग करना चाहिए l
- इनके मन्त्र जाप के लिये हल्दी की माला का प्रयोग करें  l
- पूजा का उपयुक्त समय है सँध्याकाल या मध्यरात्रि या ग्रहणकाल l
- सबसे पहले इनके भैरव, मृत्युंजय की उपासना करें l
- फिर बगला कवच का पाठ करें  l
- इसके बाद अपने संकल्प के साथ इनके मन्त्र का जाप करें l
- मंत्र होगा - "ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्वां कीलय, बुद्धि विनाशय, ह्रीं
 ॐ स्वाहा"
  3.  वाक् सिद्धि हेतु मंत्र -
ॐ ह्लीं दूं दूर्गाय नम:
  4. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु तांत्रिक मंत्र- 
ॐ श्रीं ह्रीम् क्लीं ऐं ॐ स्वाहा।
  5.  नौकरी एवं व्यापार में वृद्धि हेतु निम्नलिखित मंत्र का ग्रहणावधि तक लगातार जप करें- 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।
पं. दिनेश शास्त्री (ज्योतिर्विद)
मो. न. 8770817904
          8103211222

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