गुप्त नवरात्री का महत्व

      गुप्त नवरात्रि 12 फरवरी से 21 फरवरी 2021 तक
 एक वर्ष में चार नवरात्र पड़ते है। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है। शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र भी कहा जाता है।

 नवरात्री का महत्व :- 
वैदिक ग्रंथों में वर्णन हैं कि जीव व जीवन का आश्रय, इस वसुधा को बचाएँ रखने के लिए युगों से देव व दानवों में ठनी रहीं। देवता जो कि परोपकारी, कल्याणकारी, धर्म, मर्यादा व भक्तों के रक्षक है। वहीं दानव अर्थात्‌ राक्षस इसके विपरीत हैं। इसी क्रम में जब रक्तबीज, महिषासुर आदि दैत्य वरदानी शक्तियों के अभिमान में अत्याचार कर जीवन के आश्रय धरती को और फिर इसके रक्षक देवताओं को भी पीड़ित करने लगे तो देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन कर उसे नाना प्रकार के अमोघ अस्त्र प्रदान किए। जो आदि शक्ति माँ दुर्गा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं। 
भक्तों की रक्षा व देव कार्य अर्थात्‌ कल्याण के लिए भगवती दुर्गा ने नौ दिनों में नौ रूपों जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा को प्रकट किया। जो नौ दिनों तक महाभयानक युद्ध कर शुंभ-निशुंभ, रक्तबीज आदि अनेक दैत्यों का वध कर दिया। भगवती ने भू व देव लोक में पुनः नवचेतना, कल्याण, ओज, तेज, साहस, प्राण व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। बिना शक्ति की इच्छा के एक कण भी नही हिल सकता। त्रैलोक्य दृष्टा भगवान शिव भी (इ की मात्रा, शक्ति) के हटते ही शिव से शव (मुर्दा) बन जाते हैं। युग-युगांतरों में विश्व के अनेक हिस्सों में उत्पन्न होने वाली मानव सभ्यता ने सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधे, पर्वत व सागर की क्रियाशीलता में परम शक्ति का कहीं न कहीं आभास मिलता है। उस शक्ति के आश्रय व कृपा से ही देव, दनुज, मनुज, नाग, किन्नर, गंधर्व, पितृ, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी व कीट आदि चलायमान हैं। ऐसी परम शक्ति की सत्ता का सतत्‌ अनुभव करने वाली सुसंस्कृत, पवित्र, वेदगर्भा भारतीय भूमि धन्य है। हमारे वेद, पुराण व शास्त्र गवाह हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की है, तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि जैसे दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देव गणों ने एक अद्भुत शक्ति संपन्न देवी का सृजन किया जो आदि शक्ति माँ जगदम्बा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री बनीं। जिन्होंने दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनः प्राणशक्ति का संचार कर दिया।जिस व्यक्ति को बार-बार कर्म करने पर भी सफलता न मिलती हो, उचित आचार-विचार के बाद भी रोग पीछा न छोड़ते हो, अविद्या, दरिद्रता, (धनहीनता) प्रयासों के बाद भी आक्रांत करती हो या किसी नशीले पदार्थ भाँग, अफीम, धतूरे का विष व सर्प, बिच्छू आदि का विष जीवन को तबाह कर रहा हो। मारण-मोहन अभिचार के प्रयोग अर्थात्‌ (मंत्र-यंत्र), कुल देवी-देवता, डाकिनी-शाकिनी, ग्रह, भूत-प्रेत बाधा, राक्षस-ब्रह्मराक्षस आदि से जीना दुभर हो गया हो। 

चोर, लुटेरे, अग्नि, जल, शत्रु भय उत्पन्न कर रहे हों या स्त्री, पुत्र, बाँधव, राजा आदि अनीतिपूर्ण तरीकों से उसे देश या राज्य से बाहर कर दिए हों, सारा धन राज्यादि हड़प लिए हो। उसे दृढ़ निश्चय होकर विश्वासपूर्वक माँ भगवती की शरण में जाना चाहिए। स्वयं व वैदिक मंत्रों में निपुण विद्वान ब्राह्मण की सहायता से माँ भगवती देवी की आराधना तन-मन-धन से करना चाहिए।





 दश महाविद्या की पूजा
देवी के 10 रूपो का वर्णन षोडश तंत्र मे किया गया है | शक्ति के यह रूप संसार के सृजन का सार है | इन शक्तियो की उपासना मनोकामना पूर्ति, सिद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है जिसकी उपासना से चतुर्मुख सृष्टि रचने में समर्थ होते है | विष्णु जिसके कृपा कटाक्ष से विश्व का पालन करने मे समर्थ होते है, रुद्र जिसके बाल से विश्व का संहार करने मे समर्थ होते है |
देवी के दस रूप
काली, तारा, षोड़शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बाग्लामुखी, मातंगी ओर कमला | देवताओ के मंत्रो को मंत्र तथा देवीयो के मंत्रो को विधा कहा जाता है | इन मंत्रो का सटीक उच्चारण अति आवश्यक है | ये दस महाविद्याएँ भक्तों का भय निवारण करती है | जो साधक इन विद्याओं की उपासना करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम ओर मोक्ष सब की प्राप्ति हो जाती है | इन  महाविद्याओं की उपासना ग्रहों की शुभता की अभिवृद्धि के उद्देश्य से भी की जाती है |
काली
दस महाविधाओ में काली प्रथम है | देवीभागवत के अनुसार महाकाली ही मुख्य है | उन्हीं के उग्र और सोम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँ है | कलयुग में कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फल देने वाली और साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने में सहायक है | शनि ग्रह के लिए काली की उपासना की जाती है |
तारा
भगवती काली को नीलरूपा और सर्वदा मोक्ष देने वाली तथा तारने वाली होने के कारण तारा कहा जाता है | भारत में सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी | आर्थिक उन्नति और अन्य बाधाओं का निवारण हेतु तारा महविद्या का स्थान महत्वपूर्ण है | अनायास की विपत्तिनाश, वाक्शक्ति ओर मोक्ष की प्राप्ति के लिए तारा की उपासना की जाती है | ग्रहो मे गुरु ग्रह के लिए तारा की उपासना की जाती है |
षोड़शी
षोड़शी माहेश्वरी शक्ति की सबसे मनोहर श्रीविग्रह वाली सिद्ध देवी है | षोड़शी को श्रीविधा भी माना गया है | इनके ललिता, राज राजेश्वरी, महा त्रिपुरसुंदरी, बलपंचदशी आदि अनेक नाम है |  इनकी उपासना श्रीयंत्र के रूप मे की जाती है| ये अपने उपासक को भक्ति ओर मुक्ति दोनो प्रदान करती है | षोड़शी उपासना मे दीक्षा आवश्यक है | बुध ग्रह के लिए भी इनकी उपासना की जाती है |
भुवनेश्वरी
महाविद्याओं मे भुवनेश्वरी महाविद्या को आद्यशक्ति अर्थात मूल प्रक्रति कहा गया है | इसलिए भक्तो को अभय ओर समस्त सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है | भगवती भुवनेश्वरी की उपासना पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रद है | चंद्रमा ग्रह के लिए भी भुवनेश्वरी महाविद्या की उपासना की जाती है |
छिन्नमस्ता
परिवर्तनशील जगत का अधिपति कबन्ध है ओर उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है | इनका स्वरूप ब्रह्मांड मे सृजन ओर मृत्यु के सत्य को दर्शाता है | ऐसा विधान है की चतुर्थ संध्यकाल मे छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती है | राहु ग्रह के लिए छिन्नमस्ता की उपासना की जाती है |
त्रिपुर भैरवी
 विश्व के अधिष्ठाता दक्षिणमूर्ति कालभेरव है | उनकी शक्ति ही त्रिपुर भैरवी है | इनकी साधना की मुख्य विशेषता ये भी है की व्यक्ति के सौंदर्य मे निखार आने लगता है ओर वह अत्यंत सुंदर दिखने लगता है | इनका रंग लाल है | ये लाल रंग के वस्त्र पहनती है | त्रिपुर भैरवी का मुख्य लाभ घोर कर्म मे होता है | जन्मपत्रिका मे लग्न के लिए इनकी उपासना की जाती है |
धूमावती

धूमावती महाशक्ति अकेली है तथा स्वयं नियंत्रिका है | इनका कोई स्वामी नही है | ये विधवा स्वरूप में पूजी जाती है | धूमावती उपासना विपत्ति नाश, रोग, निवारण, युद्ध जय आदि के लिए की जाती है | यह लक्ष्मी की ज्येष्ठा है, अतः ज्येष्ठा नक्षत्र मे उत्पन्न व्यक्ति जीवनभर दुख भोगता है | उन्हे धूमावती साधना करनी चाहिए | केतु ग्रह के लिए धूमावती की उपासना की जाती है |

बग्लामुखी
यह साधना शत्रु बाधा को समाप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है | इनकी उपासना भोग ओर मोक्ष दोनो की सिद्धि के लिए की जाती है | इनकी उपासना मे हरिद्र माला, पीत पुष्प ओर पीतवस्त्र का विधान है | मंगल ग्रह के लिए भी इनकी उपासना लाभप्रद है |
मातंगी
मातंग शिव का नाम ओर इनकी शक्ति मातंगी है | ये असुरो को मोहित करने वाली ओर भक्तो को अभीष्ट फल देने वाली है | ग्रहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए मातंगी की साधना श्रेयस्कर है | सूर्य ग्रह की शुभता मे भी इनकी उपासना की जाती है |
कमला
जिसके घर मे दरिद्रता ने कब्जा कर लिया हो ओर घर मे सुख-शांति नही हो, आय का स्त्रोत नही हो, उनके लिए यह साधना सोभाग्य का द्वार खोल देती है | शुक्र ग्रह के लिए इनकी उपासना की जाती है |
                                             पं. दिनेश शास्त्री
                         मो. 8770817904



टिप्पणियाँ

  1. सभी से निवेदन है कि ब्लॉग के बारे में अपने विचार अवश्य प्रकट करें।

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  2. बहुत सुन्दर जानकारी, इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहें ।

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