अक्षय तृतीया का महत्त्व


 


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अक्षय तृतीया का महत्त्व   



        अक्षय तृतीया को अखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इसे बहुत ही शुभ तिथि माना जाता है। इस दिन लोग नई वस्तुएं खरीदते हैं और शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं। व्यापारियों के लिए भी अक्षय तृतीया का खास महत्व होता है। जानें, क्या हैं इस तिथि से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं ?
माना जाता है कि इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में धरती पर 6ठा अवतार लिया था। इसलिए इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। 
अक्षय तृतीया के दिन भोजन-अनाज की देवी अन्नपूर्णा का जन्मदिवस भी माना जाता है। इस दिन रसोई की साफ-सफाई कर पकवानों के साथ देवी अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। 
दक्षिण भारत में अक्षय तृतीया के दिन लक्ष्मी माता के पूजन का विधान है। धन की देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं इसलिए लक्ष्मीजी से पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, साथ ही कुबेर देवता का वंदन किया जाता है। 
क्यों है अक्षय तृतीया पर दान का विशेष महत्व 
 अक्षय तृतीया पर दान का विशेष महत्व है। धार्मिक कथाओं के अनुसार इस तिथि पर ऐसी कई बड़ी घटनाए घटित हुईं जो इस दिन किए दान का महत्व बहुत अधिक बढ़ा देती हैं। 

 महाभारत की कथा के अनुसार, जिस दिन दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था, उस दिन अक्षय तृतीया तिथि थी। उस दिन द्रौपदी की लाज बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय चीर प्रदान किया था। 

 माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस पात्र की खूबी यह थी कि इसका भोजन कभी समाप्त नहीं होता था। इसी पात्र की सहायता से युधिष्ठिर अपने राज्य के भूखे और गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराते थे।

अक्षय तृतीया अर्थात ऐसी तृतीया तिथि जिसका कभी क्षय न हो। इस दिन करने वाले कार्य का कभी क्षय नहीं होता है, चाहे वह पुण्य कार्य हो पाप कर्म। अतः अक्षय तृतीया को पुण्य कर्म करना ही लाभकारी रहता है। 
भविष्य पुराण के अनुसार यदि अक्षय तृतीया वाले दिन कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो प्रशस्त माना गया है।
अक्षय तृतीया में क्या दान करें अक्षय तृतीया का पर्व ग्रीष्म ऋतृ में पड़ता है, इसलिए इस पर्व पर ऐसी वस्तुओं का दान करना चाहिए । जो गर्मी में उपयोगी एंव राहत प्रदान करने वाली हो। इस दिन दान एंव उपवास करने हजार गुना फल मिलता है। अक्षय तृतीया के दिन महालक्ष्मी की साधना विशेष लाभकारी एंव फलदायक सिद्ध हेाती है। ज्येष्ठ महीना शुरू होने से पूर्व ही वैशाख शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया का पर्व रखा है, जिसमें छाता, दही, जूता-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का सरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करने का विधान रखा गया है। अतः हम तपती गर्मी आने से पूर्व स्वास्थ्य के अनुकूल इन वस्तुओं को सेंवन करें एंव दान करें।
अक्षय तृतीया का महत्व :- 

 वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी पुण्य कर्म किये जाते है, उनका फल अक्षय होता है। 
1- भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है।
 2- सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था। 
3- भगवान विष्णु ने नर-नारायण और परशुराम का अवतरण अक्षय तुतीया को ही हुआ था। 
4- ब्रह्रमा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी तिथि को हुआ था इसीलिए इसको अक्षय तिथि कहते है।
 5- इसी तिथि को बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किये जाते है।
 6- उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते है।
7- वृन्दावन स्थित श्री बॉके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते है अन्यथा बॉके बिहारी पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते है। 

8-अक्षय तृतीया 21 घटी 21 पल होती है। 
9-इसी तिथि को महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। 
10-द्वापर युग का समापन भी इसी तिथि को हुआ था। 
11-इस तिथि को बिना पंचाग देखे कोई शुभ व मॉगलिक कार्य जैसे- विवाह, गुह प्रवेश, वस्त्र-आभूषण खरीदना, वाहन एंव घर आदि खरीदा जा सकता है। 
12- अक्षय तृतीय यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन पड़े तो इसका फल कई गुना अधिक हो जाता है। 13- तृतीया मध्यान्ह से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
14- यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ का संकेत है।
15- भगवान हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था

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