ज्योतिष के प्रवर्तक आचार्यों का परिचय
।। ॐ श्री ज्योतिषरुपाय नमः ।।
प्राचीनकाल से ही महाविज्ञान ज्योतिषशास्त्र अपने प्रयोगों से इस संसार को चमत्कृत करता रहा है । यह अथाह महासागर है जिसमें जिसने जितनी गहरी डुबकी लगाई उसे उतने ही ज्ञान रूपी रत्न मिले और वह उतना ही विश्वप्रसिद्ध हुआ । आज हम उन्हीं विश्वप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों के विषय में बात करते हैं ।
सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम जिन्होंने ज्योतिष शास्त्र को चलाया ऐसे ज्योतिष शास्त्र के 18 प्रवर्तक आचार्य माने जाते हैं। ये हैं- ब्रह्मा,वशिष्ठ,आचार्य(सूर्य), अत्रि, मनु, पुलस्त्य, रोमक, मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक, भृगु, च्यवन, यवन, गर्ग, कश्यप और पराशर।
1. जगतपिता ब्रह्मा :- वेदों की रचना ब्रह्मा जी ने की और ज्योतिष वेद का अंग है अर्थात ज्योतिष के प्रथम प्रवर्तक परमपिता ब्रह्मा हैं।
2. देवर्षि नारद :- ब्रह्मा जी के मानस पुत्र देवर्षि नारद ने नारद संहिता की रचना करके ज्योतिष को विशेषता प्रदान कर दी ।
3. महर्षि भृगु :- यदि हम ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु की बात करें तो अंगिरा, अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वायंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि ऋषि इनके भाई हैं। ये विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षि मंडल में स्थान मिला है।इनके रचित कुछ ग्रंथ हैं- 'भृगु स्मृति' (आधुनिक मनुस्मृति), 'भृगु संहिता' (ज्योतिष), 'भृगु संहिता' (शिल्प), 'भृगु सूत्र', 'भृगु उपनिषद', 'भृगु गीता' आदि। 'भृगु संहिता' आज भी उपलब्ध है जिसकी मूल प्रति नेपाल के पुस्तकालय में ताम्रपत्र पर सुरक्षित रखी है। इस विशालकाय ग्रंथ को कई बैलगाड़ियों पर लादकर ले जाया गया था। भारतवर्ष में भी कई हस्तलिखित प्रतियां पंडितों के पास उपलब्ध हैं किंतु वे अपूर्ण हैं।
4. महर्षि वशिष्ठ:- महर्षि वशिष्ठ भी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। इन्होंने ज्योतिष ग्रंथ वशिष्ठ संहिता की रचना की ।
5. महर्षि अत्रि :- ऋषि अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये. सिद्धांत आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इसके साथ ही अत्री संहिता की रचना हुई। महर्षि अत्रि को मंत्र की रचना करने वाले और उसके भेद को जानने वाला भी कहा गया है।
5. महर्षि अत्रि :- ऋषि अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये. सिद्धांत आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इसके साथ ही अत्री संहिता की रचना हुई। महर्षि अत्रि को मंत्र की रचना करने वाले और उसके भेद को जानने वाला भी कहा गया है।
6. महर्षि गर्ग :-वैदिक ज्योतिष की नींव माने जाने वाले 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का योगदान भी सराहनीय रहा है। गर्ग संहिता न केवल ज्योतिष पर आधारित शास्त्र है, बल्कि इसमें भगवान श्री कृ्ष्ण की लीलाओं का भी वर्णन किया गया है. यह एक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ को ज्योतिष के क्षेत्र में रिसर्च के लिए प्रयोग किया जाता है।
7. महर्षि पुलस्त्य:- ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक हैं। ये प्रथम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक हैं। विष्णुपुराण के अनुसार ये ऋषि उन लोगों में से एक हैं जिनके माध्यम से कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। इसके अनुसार इन्होंने ब्रह्मा से विष्णु पुराण सुना था और उसे पराशर ऋषि को सुनाया और इस तरह ये पुराण मानव जाति को प्राप्त हुआ। इनसे ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त करके इनके पुत्रों ने ज्योतिष पर ग्रंथ लिखे । इनके दो पुत्र महर्षि अगस्त्य और विश्रवा थे।
8. आचार्य यवन:- आचार्य रोमक का कहना है कि जिस शास्त्र को ब्रह्मा जी ने सूर्य के लिए उपदेश किया वही सूर्य ने यवनाचार्य जी को बताया । वह ज्योतिष शास्त्र 'ताजिक' नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
9. महर्षि मरीचि:- महर्षि मरीचि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के नेत्र से हुई थी । इनका सृष्टि की रचना में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा ,इसलिए इन्हें दूसरा ब्रह्मा भी कहा गया। ये भी ज्योतिष के प्रवर्तक माने जाते हैं ,किन्तु वर्तमान में इनका कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है ।
10. महर्षि अंगिरा :- महर्षि अंगिरा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं तथा ये गुणों में ब्रह्मा जी के ही समान हैं। इन्हें प्रजापति भी कहा गया है और सप्तर्षियों में वसिष्ठ, विश्वामित्र तथा मरीचि आदि के साथ इनका भी परिगणन हुआ है। इनके दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्रशक्ति की विशेष प्रतिष्ठा है।ये भी ज्योतिष के प्रवर्तक माने गए।
11. महर्षि वेदव्यास :- व्यास जी ने वेदों का विभाजन करके उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये।वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है। ये भी ज्योतिष के प्रवर्तक माने गये हैं।
12. महर्षि च्यवन:- च्यवन ऋषि भृगु मुनि के पुत्र थे। जिन्होने जड़ी-बुटियों से 'च्यवनप्राश' नामक एक औषधि बनाकर उसका सेवन किया तथा अपनी वृद्धावस्था से पुनः युवा बन गए थे। महाभारत के अनुसार, उनमें इतनी शक्ति थी कि वे इन्द्र के वज्र को भी पीछे धकेल सकते थे। वे अत्यन्त तपस्वी थे। इन्हें भी ज्योतिष का प्रवर्तक माना गया है।
13. महर्षि पराशर :- पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। ये महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं।भारतीय ज्योतिष के प्रवर्तकों में महर्षि पराशर अग्रगण्य हैं। महर्षि प्रोक्त ग्रंथों में केवल इन्ही का सम्पूर्ण ग्रंथ 'बृहत्पराशरहोराशास्त्र' नाम से उपलब्ध हैं। अन्य प्रवर्तक ऋषियों के वचन तो इतस्ततः मिलते हैं, लेकिन किसी सम्पूर्ण ग्रंथ के अद्यावधि दर्शन नही होते हैं। यह बात पराशर के मत की सर्व व्यापकता व सार्वभौमिकता का एक पुष्कल प्रमाण है। 'पराशरहोराशास्त्र' की गुणग्रहिता व सम्पूर्णता के कारण ही इनकी यह रचना सर्वत्र प्रचलित है।
7. महर्षि पुलस्त्य:- ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक हैं। ये प्रथम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक हैं। विष्णुपुराण के अनुसार ये ऋषि उन लोगों में से एक हैं जिनके माध्यम से कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। इसके अनुसार इन्होंने ब्रह्मा से विष्णु पुराण सुना था और उसे पराशर ऋषि को सुनाया और इस तरह ये पुराण मानव जाति को प्राप्त हुआ। इनसे ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त करके इनके पुत्रों ने ज्योतिष पर ग्रंथ लिखे । इनके दो पुत्र महर्षि अगस्त्य और विश्रवा थे।
8. आचार्य यवन:- आचार्य रोमक का कहना है कि जिस शास्त्र को ब्रह्मा जी ने सूर्य के लिए उपदेश किया वही सूर्य ने यवनाचार्य जी को बताया । वह ज्योतिष शास्त्र 'ताजिक' नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
9. महर्षि मरीचि:- महर्षि मरीचि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के नेत्र से हुई थी । इनका सृष्टि की रचना में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा ,इसलिए इन्हें दूसरा ब्रह्मा भी कहा गया। ये भी ज्योतिष के प्रवर्तक माने जाते हैं ,किन्तु वर्तमान में इनका कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है ।
10. महर्षि अंगिरा :- महर्षि अंगिरा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं तथा ये गुणों में ब्रह्मा जी के ही समान हैं। इन्हें प्रजापति भी कहा गया है और सप्तर्षियों में वसिष्ठ, विश्वामित्र तथा मरीचि आदि के साथ इनका भी परिगणन हुआ है। इनके दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्रशक्ति की विशेष प्रतिष्ठा है।ये भी ज्योतिष के प्रवर्तक माने गए।
11. महर्षि वेदव्यास :- व्यास जी ने वेदों का विभाजन करके उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये।वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है। ये भी ज्योतिष के प्रवर्तक माने गये हैं।
12. महर्षि च्यवन:- च्यवन ऋषि भृगु मुनि के पुत्र थे। जिन्होने जड़ी-बुटियों से 'च्यवनप्राश' नामक एक औषधि बनाकर उसका सेवन किया तथा अपनी वृद्धावस्था से पुनः युवा बन गए थे। महाभारत के अनुसार, उनमें इतनी शक्ति थी कि वे इन्द्र के वज्र को भी पीछे धकेल सकते थे। वे अत्यन्त तपस्वी थे। इन्हें भी ज्योतिष का प्रवर्तक माना गया है।
13. महर्षि पराशर :- पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। ये महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं।भारतीय ज्योतिष के प्रवर्तकों में महर्षि पराशर अग्रगण्य हैं। महर्षि प्रोक्त ग्रंथों में केवल इन्ही का सम्पूर्ण ग्रंथ 'बृहत्पराशरहोराशास्त्र' नाम से उपलब्ध हैं। अन्य प्रवर्तक ऋषियों के वचन तो इतस्ततः मिलते हैं, लेकिन किसी सम्पूर्ण ग्रंथ के अद्यावधि दर्शन नही होते हैं। यह बात पराशर के मत की सर्व व्यापकता व सार्वभौमिकता का एक पुष्कल प्रमाण है। 'पराशरहोराशास्त्र' की गुणग्रहिता व सम्पूर्णता के कारण ही इनकी यह रचना सर्वत्र प्रचलित है।
★ ज्योतिष शास्त्र के सभी ग्रंथों पर यदि दृष्टि डाली जाये तो अनुभव होता है कि परवर्ती आचार्यों के मंतव्यों की मूल भित्ति पराशरीय विचार ही हैं। एक प्रकार से पराशर के ज्योतिषीय विचारों का प्रस्तार ही अवान्तर ग्रंथों में न्यूनाधिक रूप से देखने में आता है। अतः कहा भी गया है -
तीर्थोदकं च वह्निश्च नान्यतः शुद्धिमर्हतः॥ - (भवभूति)
अर्थात - जिस प्रकार वेदों का स्वयं प्रमाण स्वतः सिद्ध है, तीर्थ का जल व अग्नि स्वयं शुद्ध है, उन्हें शुद्ध करने, प्रमाणित करने व ग्राह्य बनाने के लिए किसी पवित्रीकरण की आवश्यकता नही होती उसी प्रकार पराशर के वचनों को प्रमाण रूप में उद्धृत करने की सर्वत्र परिपाटी है। पराशरीय कथनों व निर्णयों को प्रमाणित करने के लिए किसी अन्य ऋषि वाक्यों की आवश्यकता अकिंचित्कर ही है।
14. महर्षि कश्यप :- ये महर्षि मरीचि के पुत्र थे । महर्षि कश्यप ने समाज को एक नई दिशा देने के लिए 'स्मृति-ग्रन्थ' जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा महर्षि कश्यप ने 'कश्यप-संहिता' की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 'कस्पियन सागर' एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप जी के नाम पर ही हुआ।
15. महर्षि शौनक :- शौनक एक संस्कृत वैयाकरण तथा ऋग्वेद प्रतिशाख्य, बृहद्देवता, चरणव्यूह तथा ऋग्वेद की छः अनुक्रमणिकाओं के रचयिता ऋषि हैं। शौनक ऋषि भृगुवंशी शुनक ऋषि के पुत्र थे। ये प्रसिद्ध वैदिक आचार्य थे। नैमिषारण्य में इन्होंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था, जो बारह वर्षों तक चलता रहा। वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला था। इन्हें भी ज्योतिष का प्रवर्तक माना गया है।
16. सूर्य :- भगवान सूर्य ने मय को ज्योतिष का ज्ञान दिया था जो सूर्य सिद्धांत के रूप में प्रसिद्ध हुआ ।
17. स्वयंभू मनु :- मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभु मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये 'स्वयं भू' (अर्थात स्वयं उत्पन्न ; बिना माता-पिता के उत्पन्न) होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्होंने मनु स्मृति नामक ग्रंथ की रचना की । इन्होंने व्यक्ति के कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था का सिद्धांत दिया था ,लेकिन वर्तमान में लोगों ने सत्ता के लालच में उसे भेदभाव के रूप में प्रचारित करके स्वार्थ सिद्ध किया जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
18. महर्षि रोमक :- महर्षि रोमक ने रोमक सिद्धांत दिया जिसका वर्णन आचार्य वराह मिहिर ने भी किया है।
सभी ज्योतिष प्रवर्तक आचार्य मुझ पर आशीर्वाद बनाएं रखें ।
पंडित दिनेश शास्त्री
मो. न. 8770817904



मानव प्रवृत्तिवश कोई त्रुटि हो सकती है। अतः विद्वज्जनों से निवेदन है अपने विचार भी मुझे भेजें जिससे भविष्य में सुधार हो सके।
जवाब देंहटाएंSabhi se nivedan hai ki apni pratikriya avashya de.
जवाब देंहटाएंknowledge boosting.. 😊
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंBahut badhiya jankari
जवाब देंहटाएंDhanyawad
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